नवप्रज्ञापनमे बज्जिका रचना प्रकाशित

सञ्जय साह मित्र २०७५ पुष २३ गते १२:०६ मा प्रकाशित

नेपाली भाषा आ साहित्यके एगो प्रतिष्ठित पत्रिका नवप्रज्ञापन त्रैमासिकमे बज्जिका भाषाके आधा दर्जनसे बेसी रचना एकसाथ प्रकाशित भेल हए । देशके राजधानी काठमान्डुसे नवराज रिजालके सम्पादनमे प्रकाशित होएबाला नवप्रज्ञापन साहित्यिक पत्रिकाके ८२मा अंकमे विभिन्न नेपालीय बज्जिका साहित्यकारके रचना प्रकाशित हए । पत्रिकाके हाम्रो भाषा हाम्रो साहित्यमे श्याम सहनी चन्द्रांशु, चाँद चञ्चल, संगीता सहनी, रेणु गुप्ता, किशुनदयाल यादव श्रीकृष्ण, केदार राय यादव, विश्वराज अधिकारी, सञ्जय मित्र आ विक्रान्त शर्माके कथा, कविता, गजल प्रकाशित हए । राजधानीके प्रतिष्ठित पत्रिकामे बज्जिका भाषाके स्थान मिललासे बज्जिका भाषा आ साहित्यके क्षेत्रमे क्रियाशील लोग खुसी व्यक्त करइत सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त कएले छत । पत्रिकामे पहिले भी बज्जिका भाषा आ साहित्यपर समालोचनामूलक लेखरचना प्रकाशित होचुकल हए ।

बज्जिका बालपत्रिकाके होरहल हए तैयारी

बज्जिका भाषाके साहित्यमे बालबालिकाके प्रोत्साहनके लेल एगो बालपत्रिकाके तैयारी होरहल हए । बज्जिका भाषा आ साहित्यके क्षेत्रमे बज्जिकार्पण साहित्यिक पत्रिका धुकुरचुकर निकलरहल लेकिन बालबालिकाके रचनाके खासे स्थान मिले नसकलाके कारण बालसाहित्यके प्रोत्साहन, संरक्षण आ बालबालिकाके रचनाके स्थान देबेला एगो बालसाहित्यिक पत्रिकाके प्रकाशनके आवश्यकता महसुस होरहल हए । बालसाहित्यिक पत्रिकाके प्रकाशन तथा सम्पादन सञ्जय मित्र करेबाला भेल छत । अभीतक बालसाहित्यिक पत्रिका बज्जिका भाषामे प्रकाशन भेल केनहुसे जानकारी नभेल अवस्थामे बालसाहित्यके क्षेत्रमे नयाँ उपलब्धि होएके विश्वास मित्रके रहल हए । पत्रिकाके स्वरुप हवाई पत्रिका होएके आ तत्कालके लेल द्वैमासिक अवधिके निकालेके तैयारी होरहल हए । विभिन्न सामाजिक संजालमे बज्जिका बालसाहित्यिक पत्रिकाके प्रकाशनके लेल अनेक किसिमसे सुझाव देलजारहल हए । प्रकाशन होएसे पहिले ही पत्रिकाके चर्चा व्यापक बनलासे पत्रिकाके सफलताके विश्वास कएलगेल हए ।

लोप होखइत सखी मिलनके परम्परा

बहुत दिनके बाद नइहरमे मिललापर दुगो सखी–बहिनपाके मिलेके चलन अब औपचारिकतामे सीमित होइतजारहल हए । सादीसे पहिले नइहरमे रहलापर एकापसमे बहुत नजदिकके सखी, बहिनपा, मितिनजइसन दुगो युवती सादीके बाद अलगअलग गाँओमे चलगेलासे मोस्किलसे मिलन होइअ । नइहरमे मिललापर पहिले गलेमे गले मिलेके चलन रहे । गलेमे गले मिललाके बाद दुुनु सखी–बहिनपा एकदोसराके हाथके कसके पकडके अपना शिर र शरीरके कुछ पछाडिकेओर करइत हाथपर बलदेके पाँच फेरा घुमेके चलन रहे । बादमे नवयुवती आ बालिकालोगके खेलके रुपमे मात्रे सीमित होगेल । अब त दुगो सखी, बहिनपा, साथी, मितिन मिललापर दुनुजने हाथ मिलाबेके चलन बढइगेल हए । नाताके दुगो महिला मिललापर भी मोस्किलसे गलेमे मिलरहल हए ।

दुनु हाथके दुनु हाथसे पकडके जब महिला वृत्ताकारमे झुमइघुमइरहे तब त गीत गाबेके भी परम्परा रहे लेकिन अब ई परम्परा लगभग समाप्त होगेल हए लेकिन सहर बजार क्षेत्रके शिक्षित महिला जे अपना संस्कृतिके बुझल हए, अब फेरसे अइसन कररहल देखलजारहल हए । अपना संस्कृतिके मानमतलब नराखेबाला शिक्षित महिला एकरा खराब कहइअ लेकिन संस्कृतिपर सचेत महिला अब धीरेधीरे बजार क्षेत्रसे ही एकरा फेरसे चलनमे लेआबेके सुरुआत करचुकल हए । शिक्षित महिलाके हाथमे ही संस्कृति बचाबेके मुख्य जिम्मेवारी होएलासे जदि शिक्षित महिलाके ओरसे मित्रमिलनके परम्परागत प्रचलनके पुनः सुरुआत होरहल हए त बहुत सुन्दर मानेके संस्कृतिसे सम्बन्धित महिलालोगके ही कहनाम रहल हए । आउरो अपन परम्परागत पहिरनके भी बचाके रखलापर थप योगदान पुगेके संस्कृतिकर्मी लोगके कहनाम रहल हए ।

संस्कृतिके बचाबेमे सबसे बेसी भूमिका महिलावर्गके होएके आ महिलावर्गके ही अपन मिलनके महत्वपूर्ण संस्कृति हेराइगेलापर भी महिलावर्ग ही सचेत नहोनाइ दुखके बात रहल हए । महिलाके सचेतना अपना संस्कृतिके लेल अत्यन्त महत्वपूर्ण बात रहल रौतहटके गरुडा नगरपालिकाअन्तर्गतके मावि गेडहीके प्रधानाचार्य एवं लेखिका रेणु गुप्ताके कहनाम हए ।

पनियाजहाज

–रेणु गुप्ता

अब हमर सपना पूरा होएबाला भेल हए
हम लइके रहली त कागतके काटके जहाज बनाई
आ उहे जहाजसे खेली
हमनी
हमर सखी सऽ भी खेले
जब मास्टरजी टाँसके बात करस
तब हमर टाँस त पानीमे
बहुते दिन पिटएबो कइली
मास्टरजीके छरीसे
आज हमर ऊ सपना पूरा होएबाला भेल हए
अन नेपालोमे पनियाजहाज चलेबाला भेल हए
नेपालके झन्डा हिन्द महासागरमे फहराएबाला भेल हए
आन्ध्र महासागरमे भी फहराएबाला भेल हए
अब हमर सपना पूरा होएबाला भेल हए ।

दुगो हाइकु

अनिशा यादव
१.
लेके आएल
गरिबके संघर्ष
जीवन सुख ।
२.
फार देइअ
अन्हारके जाल
छोट इँजोत ।

आम

समतोलिया मुखिया
आम बड्का फलके नाम
सबके खेतमे रोपू आम

काँच आम कहियो नखाऊ
पाकल आमके चोभ लगाऊ

आम फलके राजा
एकरा खाएमे बहुते माजा

आम रोटी खाएके
हरिके गुन गाएके ।

सञ्जय साह मित्र

पत्रकार/लेखक

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